Friday, January 8, 2010

सीख...

खुशियों को ज़िन्दगी की समेटना सीखो,
नेमत को खुदा की सहेजना सीखो;
लाख रुकावटें आयें मजिल में तो गम नही,
पार कर उन दरियाओं को जंग जीतना सीखो;
क्या रुक जाता है इंसान गिरने पर कहीं,
गिर कर ज़मीन पर फिर उठाना सीखो;
उठकर चलो ऐसे की रास्ता तुम्हारा हो,
और झुकाने का, तूफानों से होंसला रखना सीखो;
कहते हैं ये ही सब ज़िन्दगी का सबक है यारों,
तो इन्ही सबक से ज़िन्दगी जीना सीखो;
कैसे करती है कुर्बान शमा-परवाने पे खुद को,
अपने आपको अपने ख्वाबों पर कुर्बान करना सीखो;
नहीं मिलता कुछ भी यहाँ इतनी आसानी से,
पत्थरों को मोम में तब्दील करना सीखो;
अभी तो लाखों इम्तेहान बाकी हैं देने,
साख पर लटके हुये आखरी पत्ते से उम्मीद सीखो;
जीत मिलेगी या हार ये तोह खेल है किस्मत का फिर भी,
इस जंग से जीतने का ज़ज्ज्बा और हार मानना सीखो;
होगी ही जीत एक दिन ये रज़ा है रब की तब तक,
हर हार का जश्न जीत के जैसा मनाना सीखो....
खुशियों को ज़िन्दगी की समेटना सीखो...!!!