Sunday, November 8, 2009

किसी....

किसी के इतने पास न जा के दूर जाना खौफ़ बन जाए
एक कदम पीछे देखने पर सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये;
किसी को इतना अपना न बना कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये तु पल पल खुद को ही खोने लगे;
किसी के इतने सपने न देख के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे;
किसी को इतना प्यार न कर के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाए
उसे गर मिले एक दर्द इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाए;
किसी के बारे मे इतना न सोच कि सोच का दैएरा सिर्फ़ उस तक सिमटने लगे
की हर एक सोच में सिर्फ़ वो ही वो नज़र आए;
पैर चाह किसी को इतना की तेरी चाहत तेरी ज़िन्दगी बन जाए
और कहें सब की प्यार तो बस तेरे जैसा किया जाए.....

Saturday, October 31, 2009

कुछ अधूरा सा

ये मैं हूँ या मेरी ज़िन्दगी
कुछ उलझी-उलझी सी, कुछ बिखरी सी
जैसे किसी धोके में जी रही हूँ मैं
रिश्तों के ऐसे जाल में उलझी जिससे निकलने को
बाहर दिल नही करता पर दिमाग कहता है की
तोड़ दो ये बंधन छोड़ दो वो सब जो है ही नही तुम्हारा
इस दोराहे पैर खड़ी मैं बस सोचती रहती हूँ की
मैं क्या जो कर रही हूँ वो सही है या नही
अलग होना ही सही होगा या
फ़िर चलती रहूँ इन् झूठे नातों के साथ
निभाती रहूँ इनका साथ ओढे रहूँ ये चोंगा
पैर निश्चय तो करना ही होगा
छुटेगा किसी का साथ तो...
या तो मेरा ख़ुद मेरी परछाई से
या दमन कुछ रिश्तों का....
पर हार वो तो सिर्फ़ मेरी ही होगी ना !!!

Saturday, October 3, 2009

आवाज़.....

दिल के किसी कोने में एक आवाज़ दफन है
मेरी ही तरहे खामोश निगाहों से घूरती हुई,
इस आसमान को;
जहाँ रौशनी लिए टीमटिमा रहे हैं हजारों तारे
रोज़ इन ही हजारों तारों को देखकर,
ये दफन आवाज़ भी कभी-कभी कुछ बोलना चाहती है;
कुछ बताना चाहती है मुझे मेरे ही बारे में,
या तारुफ करवाना चाहती है मुझसे ही मेरा;
या शायद अपनी खामोशी को तोड़ना चाहती हैं
इन आकाश के तारों की तरहें टिमटिमाना चाहती हैं,
शायद यह भी इसकी ऊँचाइयों को छूना चाहती हैं
ये भूल कर की वो एक सपने जैसा है;
वहाँ पहुँचाना बहुत कठिन है बहुत मुश्किल
रास्ता लंबा और मुश्किलों से भरा है,
लेकिन जब इस जंग का आगाज़ हो ही चुका है
तो देखते हैं की अंजाम क्या होगा.....

Monday, August 31, 2009

प्रजातंत्र

"क्या होता जा रहा है आज हमारे प्रजातंत्र को"? ये देश के नेता जिनके हाथों में इस देश की कमान है, क्यों वो इस बात से अनजान है, की ये सब जनता उनको देखकर बहुत हैरान परेशान है....."

आज जहाँ ज़रूरत है एक बार फ़िर हमें एक साथ खड़े होने की तो ये लड़ रहे है " जिनाह- पटेल " के नाम पर। सब मसरूफ है "जसवंत सिंह" को गिराने- उठाने में, तो कोई लगा है "बीजेपी" की छवि सुधारने में। अरे ज़रा कोई ये पार्टी-नेता किताब-सरकार-स्वतंत्रता छोडकर ध्यान दे की देश की हालत क्या है। कहने को ये सब देश के रखवाले है पर क्या किसी को भी पता है की "स्विने फ्लू' क्या बाला है ?????

आई कहाँ से,कब,क्यों, और कितनो को अपना शिकार बना चुकी है... इन नेताओं में से किसी को भी ये पता है की हमारे देश में कितने केसेस है और कितनी जाने जा चुकी है ??? इन्हें पता है की हमारे देश में अभी तक "सुवैन फ्लू की दवाई" बुक तक नही की गई है...अमेरिका जिसकी नक़ल हम उतरने में कभी पीछे नही रहते उसने कितना स्टॉक करवा लिया है...??????

इस ही बात में हम उनकी नक़ल करने में पीछे क्यों रह गए॥??? आज जिन "जिनाह-पटेल" और "स्वतंत्रता" के लिए ये नेता लड़ रहे है उनसे जाके कोई कहे की वो तो मर चुके हैं लेकिन जो जिन्दा है उनकी तरफ़ भी ध्यान दे दिया जा सकता है....और रही बात "स्वतंत्रता" की तो वो तभी जिंदा रहेगी जब उसके नागरिक खुशाल और जिंदा रहेंगे...आवाज़ दी जाए "सोनिया-राहुल प्रियंका-वरुण" को, "राज ठाकरे-अमर सिंह" को, हमारे समाज और देश को उन नेताओं को जिन्हें बाकी सारे मामले याद होते हैं, चुनाव से लेकर बैंक बैलेंस, मन्दिर से लेकर स्कूलों तक, शादी में नाचने से लेकर महारास्त्र और दूसरे प्रदेश' के लोगों को अलग करने में...कहाँ है आज वो सब लोग....?????? ये सब जो चुनाव के वक्त हर छोटे-बड़े गाँव में होते हैं लेकिन आज शायद "सुवैन फ्लू' के डर से अपने अपने घरों में छुपकर बैठे हैं.....

अरे हमारे देश के कर्मठ नेताओं ख़ुद जागो और जगाओ....

हमारे यहाँ तुम्हें पार्लियामेन्ट में सामने सिर्फ़ एक दूसरे पैर इल्जाम लगाने के लिए ही नही बैठाया जाता पर जो काम सरकार करना भूल जाए उन्हें याद दिलाये की उन्हें ये भी करने की ज़रूरत है......

जब तक इनके आपसी झगडे निपटेंगे, तब तक इस देश का क्या होगा"????? कोई चिलाओ-चीखो और इन के कानों तक आवाज़ पहुँचाओ .....

आज ज़रूरत है हमारी "फिल्मी दुनिया" के उन चहेते सितारों को आगे आने की जो "शाहरुख़ खान" की चेक्किंग पर तो इन्तेर्विएव देने के लिए आगे आजाते हैं मगर जिसके लिए आगे आने की ज़रूरत है उसे दरकिनार केर बैठे हैं....

क्या यही हाल होगा हमारे देश का, या हालत और हालात दोनों और भी ख़राब होने अभी बाकी हैं ??????????

"सोचिये और जागिये"................................!!!

Monday, July 13, 2009

तलाश- जिंदगी की.............

ये जिंदगी भी एक अजीब पहेली है,
कभी गैर तो कभी लगती सहेली है;
मन् कभी पागल पंछी सा डोलता है,
तो कभी शांत सागर सा लगता है;
जाने क्या-क्या छुपा है इस दिल में,
ढूंढे जाने हर पल किसे हर "सू" में;
ना जाने कहाँ जाके रुकेगी ये "तलाश",
और लौट आएँगी ये खिशियाँ मेरे पास;
कहाँ कब कैसे मिलेगी मुझे ये मंजिल,
जिसे धुन्धुं मैं जैसे मौज को ढूंढे साहिल;
मैं भी उसको धुन्धुं हरदम,
ते है मेरा दीवानापन;
जिंदगी भी एक अजीब पहेली है,
कभी गैर तो कभी लगती सहेली है....!

Sunday, July 12, 2009

"नई रोशनी".........

बात सदियों पुरानी है,जब हम अपने देश को "सोने की चिडिया' के नाम से जानते थे...पर आज वो ही चिडिया एक दिखावे मात्र क सिवाए कुछ नही रह गई है।
माना की हमारे देश ने अपनी आज़ादी के ६२ सालों में बहुत तरक्की की है, लेकिन इस तरक्की के साथ-साथ हमारी मानसिकताएं और प्राथमिकताएं, सब कुछ संकीर्ण हो चुकी हैं। पहले जहाँ हम कभी सिर्फ़ अपने लिए नही अपितु "संपूर्ण देश" के लिए सोचते थे, अब वह "संपूर्ण" सिर्फ़ "मैं" में बदल चुका है।
हम कहते हैं की आज भी हमारे आदर्श "महात्मा गाँधी", "जवाहरलाल नेहरू", "सुभाष चन्द्र बोस", "सरोजिनी नायडू", " इंदिरा गाँधी" आदि हैं लेकिन अपने ह्रदय से हम हम सभी को ज्ञात है की ये महज़ एक धोका है जो हम अपने आप को दे रहे हैं। हम बचपन से सुनते आए है की "हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई" सब आपस में भाई- भाई,
लेकिन १५१ साल पहले अंग्रेजों ने जिस धर्म के नाम पर राज किया था, समाज के चाँद ठेकेदारों ने कभी अपनी कुर्सी की खातिर तो कभी अपनी जेब गर्म करने के लिए, कभी अपने स्वार्थ के लिए तो कभी अपने नाम के लिए इसी फार्मूले को भुनाया;
लेकिन अब और नही इस वक्त हमारे देश को ज़रूरत है एक और "गाँधी" की जो हमारी नई पीढी का मार्गदर्शन करा सके तो एक और "भगत सिंह" और "राजगुरु" जैसे लोगों की जो ज़रूरत पड़ने पर हथियार उठाना सिखा सकें। मगर इन सब के लिए हमें किसी और का इंतज़ार नही करना है, बल्कि सब कुछ हमें ही करना होगा। हम में से ही किसी एक को "गाँधी" तो किसी एक "भगत सिंह" बनना होगा ताकि हम अपने देश को एक बार फिर इस समाज के उन चाँद ठेकेदारों से आजाद करा सके जो अपने स्वार्थ के लिए इस देश को बेचने से भी नही चूकेंगे।
आज ज़रूरत है इस देश की युवा पीढी को एक "नई रोशनी" की और इस "नई रौशनी" की मशाल को जलाये रखने की, जो हमारे साथ-साथ( हमारी युवा पीढी के साथ-साथ) हमारे देश को भी अपनी इस "नई रोशनी" से जगमगा दें।
तो आइये मिलते हैं हाथ से हाथ ऐसे की ये हाथ,ये सरगम,ये संगम कभी न टूटे...........!!!

आप...

क्या लिखूं मैं आपके बारे में,
कभी खुली किताब, तो कभी अनसुलझी पहेली सी लगते है आप ;
मेरे लिया तो एक शीतल छाँव से आप,
तो कभी शांत झील से उदास;
कभी कभी लगते जैसे हों मेरे पास,
तो कभी लगता जैसे चलें साथ साथ;
मेरे हर सपने को रंगीन बनते हैं आप,
और हर चीज़ से प्यारा है आपका एहसास;
बढ़ते हैं हाथ देने को सहारा,
जब भी भूलूं मैं किनारा;
कैसे कहूँ मेरी सबसे बड़ी ताकत हैं आप,
ऊपरवाले वहां धरती पर मेरे भगवान् हैं आप;
और जब देते मुझे अपने ज्ञान का उजाला,
तब अपने ही नाम "राकेश" से "रोशन" लगते हैं आप............!!!

कुछ खवाब

आचानक से आज हमें ये ख़याल आया,
की ऊपरवाले ने हमें क्यूँ है बनाया;
कोई मकसद ख़ास है या फ़िर,
यूँ ही हमें ये रास्ता है दिखाया;
और हम भी चल पड़े,
ढूँढ़ते अपनी अनजानी मंजिल की और;
पूरा करते अपने मकसद को,
कुछ अनकहे अधखिले खवाबों को;
है माना अपना पूरा जहाँ जिनको;
ख्वाब जो है कुछ नाज़ुक कुछ बेचैन से,
तो कुछ हँसी कुछ अनमने से;
कुछ जो देखे बंद आंखों से,
तो कुछ देखे है जागते से;
पाना है उनको बस अब तो इतना याद है,
और चलने को मुसाफिर भी तैयार है;
ख्वाब होंगे पूरे एक दिन है यकीन हमें,
मंजिलें मिलेंगी जहाँ वो रास्ते अब है हमारा रास्ता तकते हुए...............................

Saturday, June 27, 2009

क्यूँ.....................???

लोग इतने अच्छे होते हैं क्यूँ
मिलकर फ़िर बिचड जाते हैं क्यूँ;
जाना होता है उनको अगर
तो दूसरो की ज़िन्दगी महकाते हैं क्यूँ;
कहते हैं इसका नाम ज़िन्दगी है मगर
बीच भंवर छोड़ अलग हो जाते हैं क्यूँ;
डर था अगर तो पहले बता देते
की साथ देने का वादा किया था क्यूँ;
औरों की खातिर हमको भुला दिया
कहना तो था, प्यार की सज़ा इंतज़ार है क्यूँ;
चलो कभी तो एहसास उनको भी होगा
की हम उन्हें इतना चाहते थे क्यूँ.............................!


zindagi....!

जिंदगी जाने क्या-क्या रंग दिखाती है
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है,
कभी इन आंखों को रंगीन खवाब दे जाती है
तो कभी हजारों खुशियाँ बन बिक्हर जाती है,
कभी किसी रंगीन एहसास सी लगती है
तो कभी-कभी संग अपने तूफ़ान भी ले आती है,
ये तूफ़ान जो सब कुछ बदल जाते हैं
अपने संग माजी की यादें भी दे जाते हैं,
कभी तो इंसान को जीने के लाखों मकसद दे जाती है
तो कभी-कभी हर मकसद कहीं ले जाती है,
जाने क्या-क्या ये जिंदगी करवाती है
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है,
जिंदगी क्या-क्या खेल खिलाती है
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है.......................!