Saturday, October 3, 2009

आवाज़.....

दिल के किसी कोने में एक आवाज़ दफन है
मेरी ही तरहे खामोश निगाहों से घूरती हुई,
इस आसमान को;
जहाँ रौशनी लिए टीमटिमा रहे हैं हजारों तारे
रोज़ इन ही हजारों तारों को देखकर,
ये दफन आवाज़ भी कभी-कभी कुछ बोलना चाहती है;
कुछ बताना चाहती है मुझे मेरे ही बारे में,
या तारुफ करवाना चाहती है मुझसे ही मेरा;
या शायद अपनी खामोशी को तोड़ना चाहती हैं
इन आकाश के तारों की तरहें टिमटिमाना चाहती हैं,
शायद यह भी इसकी ऊँचाइयों को छूना चाहती हैं
ये भूल कर की वो एक सपने जैसा है;
वहाँ पहुँचाना बहुत कठिन है बहुत मुश्किल
रास्ता लंबा और मुश्किलों से भरा है,
लेकिन जब इस जंग का आगाज़ हो ही चुका है
तो देखते हैं की अंजाम क्या होगा.....

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