Sunday, July 12, 2009

कुछ खवाब

आचानक से आज हमें ये ख़याल आया,
की ऊपरवाले ने हमें क्यूँ है बनाया;
कोई मकसद ख़ास है या फ़िर,
यूँ ही हमें ये रास्ता है दिखाया;
और हम भी चल पड़े,
ढूँढ़ते अपनी अनजानी मंजिल की और;
पूरा करते अपने मकसद को,
कुछ अनकहे अधखिले खवाबों को;
है माना अपना पूरा जहाँ जिनको;
ख्वाब जो है कुछ नाज़ुक कुछ बेचैन से,
तो कुछ हँसी कुछ अनमने से;
कुछ जो देखे बंद आंखों से,
तो कुछ देखे है जागते से;
पाना है उनको बस अब तो इतना याद है,
और चलने को मुसाफिर भी तैयार है;
ख्वाब होंगे पूरे एक दिन है यकीन हमें,
मंजिलें मिलेंगी जहाँ वो रास्ते अब है हमारा रास्ता तकते हुए...............................

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