Sunday, July 12, 2009

आप...

क्या लिखूं मैं आपके बारे में,
कभी खुली किताब, तो कभी अनसुलझी पहेली सी लगते है आप ;
मेरे लिया तो एक शीतल छाँव से आप,
तो कभी शांत झील से उदास;
कभी कभी लगते जैसे हों मेरे पास,
तो कभी लगता जैसे चलें साथ साथ;
मेरे हर सपने को रंगीन बनते हैं आप,
और हर चीज़ से प्यारा है आपका एहसास;
बढ़ते हैं हाथ देने को सहारा,
जब भी भूलूं मैं किनारा;
कैसे कहूँ मेरी सबसे बड़ी ताकत हैं आप,
ऊपरवाले वहां धरती पर मेरे भगवान् हैं आप;
और जब देते मुझे अपने ज्ञान का उजाला,
तब अपने ही नाम "राकेश" से "रोशन" लगते हैं आप............!!!

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