Monday, July 13, 2009

तलाश- जिंदगी की.............

ये जिंदगी भी एक अजीब पहेली है,
कभी गैर तो कभी लगती सहेली है;
मन् कभी पागल पंछी सा डोलता है,
तो कभी शांत सागर सा लगता है;
जाने क्या-क्या छुपा है इस दिल में,
ढूंढे जाने हर पल किसे हर "सू" में;
ना जाने कहाँ जाके रुकेगी ये "तलाश",
और लौट आएँगी ये खिशियाँ मेरे पास;
कहाँ कब कैसे मिलेगी मुझे ये मंजिल,
जिसे धुन्धुं मैं जैसे मौज को ढूंढे साहिल;
मैं भी उसको धुन्धुं हरदम,
ते है मेरा दीवानापन;
जिंदगी भी एक अजीब पहेली है,
कभी गैर तो कभी लगती सहेली है....!

1 comment:

  1. बहुत खूबसूरत एहसास की रचना
    अच्छी लगी

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