ये जिंदगी भी एक अजीब पहेली है,
कभी गैर तो कभी लगती सहेली है;
मन् कभी पागल पंछी सा डोलता है,
तो कभी शांत सागर सा लगता है;
जाने क्या-क्या छुपा है इस दिल में,
ढूंढे जाने हर पल किसे हर "सू" में;
ना जाने कहाँ जाके रुकेगी ये "तलाश",
और लौट आएँगी ये खिशियाँ मेरे पास;
कहाँ कब कैसे मिलेगी मुझे ये मंजिल,
जिसे धुन्धुं मैं जैसे मौज को ढूंढे साहिल;
मैं भी उसको धुन्धुं हरदम,
ते है मेरा दीवानापन;
जिंदगी भी एक अजीब पहेली है,
कभी गैर तो कभी लगती सहेली है....!
बहुत खूबसूरत एहसास की रचना
ReplyDeleteअच्छी लगी