Wednesday, October 8, 2025

Lies of the Soul !

 In disguise of the nature and worldly amusement

we loose the core to win few

the soul within us dies a little at the mockery of the fate

It's assumed that we give what is in abundance 

but to the narrative otherwise we give what is lacking 

Vicious circle we fall in but falling apart on each other

That vacant chair, those non-sipped cups 

those incomplete conversations that fight at the night

all hang loose on the wire unseen

invisible journey with no one walking beside

Never ending paths dying spirit 

still a cast to drag further... 

 


Thursday, October 16, 2014

तलाश...

ना जाने आज कहाँ से फिर ये सोती हुई उंगलियां जाग उठी;
जैसे बरसों बाद किसी ने आवाज़ दी  हो इन्हे,
इनके उठते ही एसा लगा जैसे कुछ बिखर गया था शायद अंदर;
समेटने का वक़्त हुआ हो जैसे एक बार फिर ;
तलाशती यूँ खुद को अंधेरों के बीच जैसे दूर एक उजाला नज़र आता हुआ
वो एक रौशनी दूर कहीं टिमटिमाते तारे की
जो ना जाने कब खो जाये इन बादलों के बीच, जैसे बस सहारा देने आया हो
एक उम्मीद जगाने आया हो, कहता  खो भी गया अगर खुद को ना खोने देना
उठना फिर से तुम और ढढूंढना जो खो गया है कहीं
वो मुस्कराहट जो खेलती थी इन होटों पर, वो शरारतें जो करती थी ये आँखे हर पल
वो सपने जो जागती आँखों में मचलते थे, वो ख्वाशियें जो हर पल कुछ कर गुजरने का एहसास थी
एक बार फिर से ज़िंदा होने दो वो सब अपने अंदर और
एक बार फिर से निकलो एक नयी ज़िन्दगी की तलाश में  एक नए खुद की तलाश में...

Friday, January 8, 2010

सीख...

खुशियों को ज़िन्दगी की समेटना सीखो,
नेमत को खुदा की सहेजना सीखो;
लाख रुकावटें आयें मजिल में तो गम नही,
पार कर उन दरियाओं को जंग जीतना सीखो;
क्या रुक जाता है इंसान गिरने पर कहीं,
गिर कर ज़मीन पर फिर उठाना सीखो;
उठकर चलो ऐसे की रास्ता तुम्हारा हो,
और झुकाने का, तूफानों से होंसला रखना सीखो;
कहते हैं ये ही सब ज़िन्दगी का सबक है यारों,
तो इन्ही सबक से ज़िन्दगी जीना सीखो;
कैसे करती है कुर्बान शमा-परवाने पे खुद को,
अपने आपको अपने ख्वाबों पर कुर्बान करना सीखो;
नहीं मिलता कुछ भी यहाँ इतनी आसानी से,
पत्थरों को मोम में तब्दील करना सीखो;
अभी तो लाखों इम्तेहान बाकी हैं देने,
साख पर लटके हुये आखरी पत्ते से उम्मीद सीखो;
जीत मिलेगी या हार ये तोह खेल है किस्मत का फिर भी,
इस जंग से जीतने का ज़ज्ज्बा और हार मानना सीखो;
होगी ही जीत एक दिन ये रज़ा है रब की तब तक,
हर हार का जश्न जीत के जैसा मनाना सीखो....
खुशियों को ज़िन्दगी की समेटना सीखो...!!!

Sunday, November 8, 2009

किसी....

किसी के इतने पास न जा के दूर जाना खौफ़ बन जाए
एक कदम पीछे देखने पर सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये;
किसी को इतना अपना न बना कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये तु पल पल खुद को ही खोने लगे;
किसी के इतने सपने न देख के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे;
किसी को इतना प्यार न कर के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाए
उसे गर मिले एक दर्द इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाए;
किसी के बारे मे इतना न सोच कि सोच का दैएरा सिर्फ़ उस तक सिमटने लगे
की हर एक सोच में सिर्फ़ वो ही वो नज़र आए;
पैर चाह किसी को इतना की तेरी चाहत तेरी ज़िन्दगी बन जाए
और कहें सब की प्यार तो बस तेरे जैसा किया जाए.....

Saturday, October 31, 2009

कुछ अधूरा सा

ये मैं हूँ या मेरी ज़िन्दगी
कुछ उलझी-उलझी सी, कुछ बिखरी सी
जैसे किसी धोके में जी रही हूँ मैं
रिश्तों के ऐसे जाल में उलझी जिससे निकलने को
बाहर दिल नही करता पर दिमाग कहता है की
तोड़ दो ये बंधन छोड़ दो वो सब जो है ही नही तुम्हारा
इस दोराहे पैर खड़ी मैं बस सोचती रहती हूँ की
मैं क्या जो कर रही हूँ वो सही है या नही
अलग होना ही सही होगा या
फ़िर चलती रहूँ इन् झूठे नातों के साथ
निभाती रहूँ इनका साथ ओढे रहूँ ये चोंगा
पैर निश्चय तो करना ही होगा
छुटेगा किसी का साथ तो...
या तो मेरा ख़ुद मेरी परछाई से
या दमन कुछ रिश्तों का....
पर हार वो तो सिर्फ़ मेरी ही होगी ना !!!

Saturday, October 3, 2009

आवाज़.....

दिल के किसी कोने में एक आवाज़ दफन है
मेरी ही तरहे खामोश निगाहों से घूरती हुई,
इस आसमान को;
जहाँ रौशनी लिए टीमटिमा रहे हैं हजारों तारे
रोज़ इन ही हजारों तारों को देखकर,
ये दफन आवाज़ भी कभी-कभी कुछ बोलना चाहती है;
कुछ बताना चाहती है मुझे मेरे ही बारे में,
या तारुफ करवाना चाहती है मुझसे ही मेरा;
या शायद अपनी खामोशी को तोड़ना चाहती हैं
इन आकाश के तारों की तरहें टिमटिमाना चाहती हैं,
शायद यह भी इसकी ऊँचाइयों को छूना चाहती हैं
ये भूल कर की वो एक सपने जैसा है;
वहाँ पहुँचाना बहुत कठिन है बहुत मुश्किल
रास्ता लंबा और मुश्किलों से भरा है,
लेकिन जब इस जंग का आगाज़ हो ही चुका है
तो देखते हैं की अंजाम क्या होगा.....

Monday, August 31, 2009

प्रजातंत्र

"क्या होता जा रहा है आज हमारे प्रजातंत्र को"? ये देश के नेता जिनके हाथों में इस देश की कमान है, क्यों वो इस बात से अनजान है, की ये सब जनता उनको देखकर बहुत हैरान परेशान है....."

आज जहाँ ज़रूरत है एक बार फ़िर हमें एक साथ खड़े होने की तो ये लड़ रहे है " जिनाह- पटेल " के नाम पर। सब मसरूफ है "जसवंत सिंह" को गिराने- उठाने में, तो कोई लगा है "बीजेपी" की छवि सुधारने में। अरे ज़रा कोई ये पार्टी-नेता किताब-सरकार-स्वतंत्रता छोडकर ध्यान दे की देश की हालत क्या है। कहने को ये सब देश के रखवाले है पर क्या किसी को भी पता है की "स्विने फ्लू' क्या बाला है ?????

आई कहाँ से,कब,क्यों, और कितनो को अपना शिकार बना चुकी है... इन नेताओं में से किसी को भी ये पता है की हमारे देश में कितने केसेस है और कितनी जाने जा चुकी है ??? इन्हें पता है की हमारे देश में अभी तक "सुवैन फ्लू की दवाई" बुक तक नही की गई है...अमेरिका जिसकी नक़ल हम उतरने में कभी पीछे नही रहते उसने कितना स्टॉक करवा लिया है...??????

इस ही बात में हम उनकी नक़ल करने में पीछे क्यों रह गए॥??? आज जिन "जिनाह-पटेल" और "स्वतंत्रता" के लिए ये नेता लड़ रहे है उनसे जाके कोई कहे की वो तो मर चुके हैं लेकिन जो जिन्दा है उनकी तरफ़ भी ध्यान दे दिया जा सकता है....और रही बात "स्वतंत्रता" की तो वो तभी जिंदा रहेगी जब उसके नागरिक खुशाल और जिंदा रहेंगे...आवाज़ दी जाए "सोनिया-राहुल प्रियंका-वरुण" को, "राज ठाकरे-अमर सिंह" को, हमारे समाज और देश को उन नेताओं को जिन्हें बाकी सारे मामले याद होते हैं, चुनाव से लेकर बैंक बैलेंस, मन्दिर से लेकर स्कूलों तक, शादी में नाचने से लेकर महारास्त्र और दूसरे प्रदेश' के लोगों को अलग करने में...कहाँ है आज वो सब लोग....?????? ये सब जो चुनाव के वक्त हर छोटे-बड़े गाँव में होते हैं लेकिन आज शायद "सुवैन फ्लू' के डर से अपने अपने घरों में छुपकर बैठे हैं.....

अरे हमारे देश के कर्मठ नेताओं ख़ुद जागो और जगाओ....

हमारे यहाँ तुम्हें पार्लियामेन्ट में सामने सिर्फ़ एक दूसरे पैर इल्जाम लगाने के लिए ही नही बैठाया जाता पर जो काम सरकार करना भूल जाए उन्हें याद दिलाये की उन्हें ये भी करने की ज़रूरत है......

जब तक इनके आपसी झगडे निपटेंगे, तब तक इस देश का क्या होगा"????? कोई चिलाओ-चीखो और इन के कानों तक आवाज़ पहुँचाओ .....

आज ज़रूरत है हमारी "फिल्मी दुनिया" के उन चहेते सितारों को आगे आने की जो "शाहरुख़ खान" की चेक्किंग पर तो इन्तेर्विएव देने के लिए आगे आजाते हैं मगर जिसके लिए आगे आने की ज़रूरत है उसे दरकिनार केर बैठे हैं....

क्या यही हाल होगा हमारे देश का, या हालत और हालात दोनों और भी ख़राब होने अभी बाकी हैं ??????????

"सोचिये और जागिये"................................!!!